किसी भी उद्घोषित लक्ष्य की पूर्ति का सतत, सक्षम एवं सुव्यवस्थित प्रयत्न उस को प्राप्त करने हेतु आवश्यक है।किसी आदर्श को साकार करने हेतु एक विशिष्ट प्रक्रिया की आवश्यक ता होती है। ‘शाखा ‘ संघ के सभी कार्यो का अधिष्ठान है क्योंकि प्रत्येक कार्य के लिये आवश्यक योग्य, समर्पित व ध्येय निष्ठ कार्यकर्ताओं का निर्माण इस पद्दति से ही सिद्ध हुआ है।आद्य सरसंघचालक पूज्य डॉ हेडगेवार ने संघ स्थापना के समय गंभीर चिंतन के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि लोगों की मानसिक अवस्था में क्रांति ही समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।परम वैभव के लक्ष्य हेतु मातृभूमि के लिये सर्वस्व-समर्पण की तीव्र भावना, बंधुत्व-भाव, राष्ट्र-कार्य में अपना योग देने की भावना, राष्ट्रीय आदर्शों के प्रति सम्मान का उत्कट भाव, अनुशासन ,पराक्रम, पौरूष और अन्य उदात्त सद्गुणों के प्रति गहरी श्रद्धा का भाव जागृत करना आवश्यक है। राष्ट्र के प्रति समर्पण की यह भावना,वर्षानुवर्ष और दिन-प्रतिदिन स्थिर ज्योति के समान जलती रहे, इसलिए एक ऐसा वातावरण, जो सभी में इन गुणों के विकास में सहायक हो सके, हेतु लोगों का नियमित और प्रतिदिन एकत्रित होना आवश्यक है।इसी बात का अनुभव लेते हुए संघ संस्थापक प. पू डॉ हेडगेवारजी ने संगठन के ढांचे को विकसित किया।
संघ शाखा के संपर्क में आये बिना कार्य की वास्तविक भावना समझ में आनी मुश्किल है। आज संपूर्ण भारतवर्ष में केवल नगरों और कसबों में ही नहीं, अपितु दूर-दूर तक फैले हुए ग्रामों,पहाड़ियों तथा घाटियों में भी शाखा के प्रेरक दृश्य और आत्मा को आंदोलित करने वाले गीत सूर्योदय ,सूर्यास्त अथवा रात्रि में प्रतिदिन नियमित रूप से मिलते हैं।
गु. गोलवलकर जी के शब्दों में ” यदि हम अपने-आपको एक पुस्तक के शब्दों तक ही सीमित कर लेंगे तो हम किसी भी तरह इन मुस्लिम और ईसाइयों से अच्छे नहीं होंगे, जिनका धर्म केवल एक पुस्तक पर ही टिका है। इसलिए हमारी निष्ठा आदर्श के प्रति है, इससे कम के लिए अथवा अन्य किसी के लिये नहीं। ” इस सांस्कृतिक परंपरा के अनूरूप संघ ने भगवा ध्वज को परम सम्मान के अधिकार-स्थान पर अपने सामने रखा है।
संघ शाखा में आने से नेतृत्व के गुण पहले से ही विकसित होने लगते हैं । संघ शाखा में गट नायक, गण शिक्षक, मुख्य शिक्षक का दायित्व संभालते संभालते स्वयंसेवक में अनुशासन का भाव और नेतृत्व के गुण उभरने लगते हैं। जिससे उनका विकास होता रहता है । स्वयंसेवकों में कई नए गुण विकसित होते रहते हैं जैसे शाखा में हर रोज़ गीत होता है जिससे जो बच्चा जिसका स्वर अच्छा होता है उसको गाने का मौका मिलता रहता है । शाखा में हर रोज़ कहानी , समाचार समीक्षा आदि के कार्यक्रम में स्वयंसेवकों का बौद्धिक स्तर भी निखरता है । शाखा में जा कर सभी को एक बड़ा परिवार मिलता है। अपने से बड़ों से मार्गदर्शन और स्नेह , छोटों की देखभाल ,और साथियों से सामंजस्य आदि के गुण मिलते हैं ।
संघ द्वारा बच्चों और युवाओं के मानसिक शारीरिक विकास के लिये वर्ष में बाल शिविर , प्राथमिक शिक्षा वर्ग, संघ शिक्षा वर्ग , गीत प्रतियोगता , कहानी , खेल प्रतियोगिता, घोष आदि आयोजित करता रहता है।इस के अतिरिक्त राष्ट्रीय त्यौहारों को मनाने की परंपरा जो संघ ने विकसित की है, वास्तविक राष्ट्र जीवन के प्रति भाव जगाने की दृष्टि से एक प्रभावी माध्यम है। भारतीयों के नव वर्ष का सनातन समय से प्रथम दिन, वर्ष प्रतिपदा हमारे युगप्रवर्तकों की अमर उपलब्धियों का स्मरण करवाता है। हिंदू साम्राज्य दिनोत्सव(ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी) उत्पीड़नकारी मुस्लिम शासकों पर शिवाजी के पराक्रमी नेतृत्व में सन् 1674 में हिंदुत्व की पुनरुत्थानशील शक्ति के विजय का सूचक है,संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न राष्ट्रीय सिंहासन की स्थापना का दिन है।गूरूपूजा एक परंपरागत दिन है। संघ ने इसे राष्ट्रीय स्वरूप दिया है। इस स्वयंसेवक सनातन धर्म और राष्ट्रत्व के प्रतीक अपने गुरू ध्वज की पूजा करते हैं। रक्षाबंधन बन्धुत्व का प्रतीक है और इस बात का स्मरण करवाता है कि हम सब एक मातृभूमि के पुत्र हैं। विजयादशमी दुष्ट शक्तियों पर हमारे विजय की गौरवमयी परंपराओं का स्मरण कराती हैं।मकर संक्रांति जो प्रकृति के अंधकार से प्रकाश की ओर होने वाले संक्रमण का स्मरण करवाती है और यह संदेश भी देती है कि हम स्वार्थ रूपी अंधकार से राष्ट्रीय चेतना रूपी प्रकाश की ओर चलें।संघ के सर कार्यवाह भैया जी जोशी के शब्दों में ” शाखा के क्षेत्र में प्रत्येक परिवार किस प्रकार आदर्श परिवार बन सके। उसके सभी सदस्य संस्कारवान व देशभक्त हों। समाज में सामाजिक कार्य करने वालों की संख्या बढ़नी चाहिए। जिससे कि समरसता, सदभाव, एकात्मता, स्वदेशी का भाव स्वावलंबन का भाव स्थायी रूप से समाज का भाव बन सके।” हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिला में स्वयंसेवकों की प्रेरणा से शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले संगठन विद्या भारती के लगभग 38 विद्यालयों को स्वयंसेवकों द्वारा खड़ा कर राष्ट्रीय और संस्कार मय शिक्षा दी जा रही है। इसी तरह संघ से प्रेरणा ले कर बनवासी कल्याण आश्रम, हिंदू सेवा प्रतिष्ठान, सेवा भारती आदि अनेक संगठनों में स्वयंसेवकों द्वारा निरंतर कार्य किया जा रहा है। इन संगठनों द्वारा वैश्विक महामारी कोरोना में किये जा रहे सहायता कार्य सर्वविदित है। जिन गांव में शाखा लगती है वहाँ शाखा के प्रारंभ होने के बाद से गांव के ज्यादातर झगड़े पंचायत में बैठ कर आपस में ही निपटा लिये जाते हैं। शराब की खपत भी न के बराबर है।पूर्ण साक्षरता की तरफ यह गांव तीव्रता से बढ़ रहे हैं।
इसी तरह विद्या भारती के 350 संस्कार केंद्र पंजाब में चल रहे हैं।विद्या भारती द्वारा 350 संस्कार केंद्र चलाया जाना उसकी उपलब्धि नहीं है। उपलब्धि है इन संस्कार केंद्रों के माध्यम से होने वाला सामाजिक परिवर्तन।स्लम बस्तियों में जाने पर स्वयंसेवकों ने देखा कि देश का भविष्य बालक सबसे उपेक्षित वर्ग है। जब सभी बालकों ने अपने-अपने घर जा कर सुबह उठते ही माता-पिता के चरण स्पर्श किये तो वह सुखद अनुभूति से भर गये। उन के पूछने पर उन्होने बताया कि इस के लिये उन्हे संस्कार केंद्र के शिक्षक ने प्रेरणा दी है और यह भी सिखाया है कि माता-पिता ही उनके पहले भगवान हैं। इस के बाद तो घर का माहौल बदलने लगा।अब उनके पिताजी ने भी घर में शराब पीना बंद कर दिया तांकि उन के बालकों में उन की भगवान की छवि खंडित न हो जाए।इसी प्रकार प्रार्थना में गायत्री मंत्र सिखाने पर सभी में हर्ष की लहर दौड़ गयी क्यूंकि अब तक सभी को यही गलत कल्पना थी कि इस मंत्र पर केवल ब्राह्मणों का ही अधिकार है। इस प्रकार इन बस्तियों में समरसता का वातावरण और एक नई ऊर्जा पैदा हुई।
इस प्रकार शाखा के दैनिक कार्यक्रमों से उत्साह, पराक्रम, निर्भयता अनुशासन सूत्रबद्धता,विजय वृति, अखंड रूप से कार्य करने का अभ्यास, परस्पर सहयोग आत्मविश्वास सामाजिक व राष्ट्रीय भाव आदि गुणों का विकास निरंतर होता रहता है।शाखा सज्जनों की सुरक्षा का भी बिना बोले अभिवचन है।स्वयंसेवकों का अनुशासन पथसंचलन के समय बखूबी दिखाई देता हैइस के अतिरिक्त बड़े से बड़े कार्यक्रम में थोड़े से स्वयंसेवकों की उपस्थिति भी व्यवस्था में गहरी छाप छोड़ देती है।संघ के आत्माभिव्यक्तिपूर्ण प्रतिमान ने समाज को अनेक अतुलनीय अत्याचारों और आक्रमणों के बावजूद अपनी एकता की भावना जीवित रखने में मदद दी है।