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राष्ट्र की चेतना स्थली अयोध्या

Sukhdev Vashist, 4th Estate News
सुखदेव वशिष्ठ

भारतीय जनमानस की आस्‍था और चेतना के प्रतिमान प्रभु श्रीराम की जन्‍मस्‍थली में भव्य मंदिर की स्‍थापना की प्रक्रिया प्रभु कृपा से गतिमान है। भारत के चेतना स्थल ‘अयोध्या‘ में श्री राम जन्मभूमि पर भारतीय राष्ट्रजीवन के परिचायक और सम्पूर्ण मानवता को राक्षसी आतंकवाद से मुक्त करवाने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के भव्य मंदिर का 5 अगस्‍त, 2020 को हुआ भूमिपूजन/शिलान्‍यास न केवल एक मंदिर का था वरन्, एक नए युग का भी था।

शताब्दियों के संघर्ष और कोटि-कोटि बंधु-बांधवों की तपस्या के उपरांत 05 अगस्‍त 2020 को अभिजीत मुहूर्त में मध्‍याह्न बाद 12.30 से 12.40 के बीच आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी जी श्री रामलला के दिव्‍य मंदिर की आधारशिला रखी। यह मंदिर भारत में सभी जातियों को जोड़कर सभी भारतीयों को एक राष्ट्रपुरुष के रूप में खड़ा करेगा, साथ ही सारे संसार में एकता ,मर्यादा एवं समन्वय स्थापित करने का संदेश भी देगा।

राष्ट्रीयता का हृदय स्थल अयोध्या

अयोध्या अनेक शताब्दियों तक भारत की राष्ट्रीय राजधानी रही है। अयोध्या में श्री राम जन्मस्थल पर महाराजा कुश ने एक भव्य मंदिर बनवाया।यह मंदिर श्री राम अर्थात भारत की विदेशी आक्रमणकारियों पर विजय का प्रतीक स्तम्भ था। विदेशियों ने इसे नष्ट करने के कई प्रयास किये क्यूंकि इसे नष्ट किये बिना हिन्दुत्व अथवा राष्ट्र-जीवन नष्ट नहीं हो सकता। भारतीयों ने भी इस की रक्षा के लिये हजारों वर्षों तक लगातार संघर्ष किया। किसी भी स्थान के लिये इतना लंबा संघर्ष और लाखों लोगों का उस स्थान के लिये जीवन बलिदान करना अपने आप में यह दिखाता है कि श्री राम का सम्बन्ध इस देश की राष्ट्रीयता से है। बाबर ने भारत के इस हृदय स्थल पर चोट की और इस को तहस-नहस कर मस्जिदनुमा ढांचा खड़ा कर दिया। इस राष्ट्रीय अपमान को मिटाने हेतु भारतीयों ने 71 बार आक्रमण किये ।1526 से 6दिसम्बर 1992 तक चार लाख से भी अधिक हिन्दुओं ने राष्ट्रीय गौरव के इस स्थान को प्राप्त करने हेतु बलिदान दिया।जन्मभूमि पर महाराजा कुश के द्वारा बनवाया गया मंदिर आक्रमणकारियों का सदियों तक निशाना बनता रहा। सदियों तक आघात सहन करने पर भी इसका आस्तित्व कोई नहीं मिटा सका।

अकबर और राम चबूतरा

अकबर ने कूटनीति का सहारा लेते हुए दो हिंदू राजाओं टोडरमल और बीरबल को मध्यस्तता हेतु प्रेरित किया। इन दोनो ने नकली मस्जिद में चबूतरा बनवा दिया। हिंदू समाज ने यही पूजा शुरू कर दी। परंतु पूर्ण मुक्ति हेतु संघर्ष बंद नहीं किया। दीवान ए अकबरी के अनुसार ” जन्मभूमि को वापिस लेने हेतु हिन्दुओं ने 20 हमले किये।बाबर ने मंदिर में गुम्बद लगवाकर, परिक्रमा को सुरक्षित रख कर, भगवान शंकर की मूर्ति वाले कसौटी के पत ्थरों का आधार स्वीकार कर और मुख्यद्वार पर गोलचक्र रखवाकर और घन्टी की आवाज के साथ पूजा-अर्चना की इजाजत दे कर इस भवन को मंदिर स्वीकार कर लिया था। राम चबूतरे की स्वीकृति दे कर अकबर ने बाबर की स्वीकृति पर मोहर लगा दी। स्वामी महेश्वरा नंद, जयराज कुमारी, स्वामी बलरामचार्य आदि अनेकों महान विभूतियों ने इस दौर में संघर्ष जारी रखा।

सिख पंथ, बाबा वैष्णव दास और राष्ट्र रक्षक गुरू गोविंद सिंह जी का राम मंदिर के लिये संघर्ष

श्री गुरू नानकदेव जी के द्वारा प्रारम्भ की गई भक्ति आंदोलन की राष्ट्रीय लहर के कारण पंजाब में सिख गुरुओं की अनूठी बलिदानी परंपरा प्रारम्भ हुई। श्री गुरू अर्जुन देव जी, श्री गुरू तेग बहादुर जी के अनुपम बलिदानों से उत्तर भारत में वीरव्रत का भाव जगा।इस क्षेत्र में राष्ट्रीय चेतना ने स्वयं को श्री गुरू गोविंद सिंह जी के रूप में प्रकट किया जिन्होने अपना सर्वस्व बलिदान करके मुगलों के तख्त को उखाड़ने में भरपूर योगदान दिया।

उधर औरंगजेब ने गद्दी पर बैठते ही कट्टरपंथी मौलवियों की कठपुतली बन कर पहला शाही फैंसला राम मंदिर को तोड़ने का ही किया।इस फैंसले का विरोध महात्मा वैष्णवदास ने अपनी चीमटाधारी साधुओं की फौज से किया और मुगल फौज को मार भगाया।इस पर औरंगजेब ने हसन अली के नेतृत्व में 60,000 की फौज भेजी। इन दिनों खालसा पंथ के संस्थापक दशमेश पिता श्री गुरू गोविंद सिंह जी पूरे पंजाब में मुगलों से लोहा ले रहे थे।भारत के प्रत्येक कोने का प्रतिनिधित्व करने वाले पांच प्यारे सजा कर इन्होने पूरे राष्ट्र की संस्कृति और मानबिंदुओं की सुरक्षा का बीड़ा उठाया था। स्वामी वैष्णव दास ने इनसे संपर्क स्थापित कर इनसे राम मंदिर की रक्षा हेतु अपने सैन्य बल के साथ आने की प्रार्थना की। वह संदेश पा कर तुरंत आगरा से अयोध्या की तरफ कूच कर गये।श्री गुरू गोविंद सिंह जी की और बाबा वैष्णोदास जी के अनूठे रण कौशल से एक भी मुगल सैनिक जन्मभूमि मंदिर के पास नहीं जा सका।

अदालत के निर्णय पर मंदिर निर्माण

यह अवसर उल्‍लास, आह्लाद, गौरव एवं आत्‍मसन्‍तोष का है।इस वेला की प्रतीक्षा में कई पीढियों के अधूरी कामना लिए परमधाम में लीन होने पर भी संघर्ष का क्रम सतत जारी रहा।

आस्‍था से उत्‍पन्‍न भक्ति की शक्ति के अखंड प्रताप से ही यह संभव हो पाया है। श्रीरामजन्‍मभूमि मंदिर निर्माण में अवरोध विगत शताब्दियों से सनातन हिन्‍दू समाज की आस्‍थावान सहिष्‍णुता की कठोर परीक्षातुल्‍य था।

राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ के मार्गदर्शन, पूज्‍य संतों का नेतृत्‍व एवं विश्‍व हिन्‍दू परिषद की अगुवाई में आजादी के बाद चले सबसे बड़े सांस्‍कृतिक आंदोलन ने न केवल प्रत्‍येक भारतीय के मन में संस्‍कृति एवं सभ्‍यता के प्रति आस्‍था का भाव जागृत किया अपितु भारत की राजनीति की धारा को भी परिवर्तित किया। 21 जुलाई, 1984 को अयोध्‍या के वाल्‍मीकि भवन में श्रीराम जन्‍मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन हुआ और सर्वसम्‍मति से पूज्‍य गुरूदेव गोरक्षपीठाधीश्‍वर महंत श्री अवेद्यनाथ जी महाराज को अध्‍यक्ष चुना गया।आज उन्ही के शिष्य योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश में मुख्य मन्त्री हैं और प्रभु श्री राम का मंदिर उन के कार्यकाल में बनने जा रहा है।

पूज्‍य संतों की तपस्‍या के परिणामस्‍वरूप राष्‍ट्रीय वैचारिक चेतना में विकृत, पक्षपाती एवं तथाकथित धर्मनिरपेक्षता तथा साम्‍प्रदायिक तुष्‍टीकरण की विभाजक राजनीति का काला चेहरा बेनकाब हो गया।

सभी के सौभाग्य से यह कार्य सभी मजहबों, पंथों एवं संतों की इच्छानुसार भारत के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयानुसार सम्पन्न होने जा रहा है।सर्वविदित है कि जब यह विषय समाज ने संगठित होकर अपनी तीव्र प्रतिक्रिया स्वरूप धरनों, प्रदर्शनों और विशाल सम्मेलनों की झड़ी स्वरूप लिया तो कहीं जाकर सर्वोच्च न्यायालय ने निरन्तर सुनवाई शुरू करके अंत में ऐतिहासिक तथ्यों और उत्खनन में मिले सबूतों के आधार पर ऐतिहासिक निर्णय दिया । बलिदानी संघर्ष का अंत संविधान के अनुसार हो जाना अत्यन्त हर्ष का विषय है।

जन्‍मभूमि की मुक्ति के लिए कड़ा संघर्ष हुआ है। न्‍याय और सत्‍य के संयु‍क्‍त विजय का यह उल्‍लास अतीत की कटु स्‍मृतियों को भुला कर समाज में समरसता के प्रवाह की नवप्रेरणा दे रहा है।

आज श्री राम मंदिर के निर्माण शुरू होने पर समाज में राम भाव अथवा राष्ट्रभाव जागृत हो रहा है।

निश्चय ही अयोध्या में राम मंदिर कठिन तपस्या का प्रतिफल है।इस अवसर पर जागृत राष्ट्र भाव से निश्चित ही हम आत्म निर्भर बनते हुए वैश्विक महाशक्ति के रूप में उभरेंगे।

सुखदेव वशिष्ठ एक लेखक, चिंतक और विचारक हैं।

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