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दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रवेश प्रक्रिया, नई पीढ़ी के भविष्य से खिलवाड

4th estate news
राजेश बंसल

दिल्ली विश्वविद्यालय, यानी डीयू में पढ़ना हर विद्यार्थी का सपना होता है। परंतु दिल्ली विश्वविद्यालय ने कुछ ऐसे नियम बना डाले हैं, जिससे योग्यता होने पर भी मनमुताबिक कॉलेजों में एडमिशन पाना विद्यार्थियों की मेधा नहीं, बल्कि उनके भाग्य का खेल बन गया है। कट ऑफ के दबाव में पहले एडमिशन ले चुके विद्यार्थी यदि विशेष कट ऑफ में मनचाहा कॉलेज में नामांकन के योग्य भी होते हैं, तो इस मौके से वे वंचित रह जाएंगे। डीयू में नामांकन की ऐसी प्रक्रिया अतार्किक और होनहार विद्यार्थियों के लिए एक छलावा जैसी है।

जहां दिल्ली विश्वविद्यालय ने कोविड-19 को मद्देनजर रखते हुए संपूर्ण रुप से ऑनलाइन प्रवेश प्रक्रिया लागू की जिसके कारण विद्यार्थियों को बिना कोई अवरोध के विभिन्न कॉलेजों में दाखिला मिलने में सुविधा रही, वह एक सराहनीय और प्रशंसनीय कदम है।

काफी हद तक विद्यार्थियों द्वारा विभिन्न कॉलेजों में जाना और प्रवेश प्रक्रिया की मारामारी से इस बार विद्यार्थियों और अभिभावकों को निजात मिली। परंतु अभी दिल्ली विश्वविद्यालय ने पांच कट ऑफ लिस्ट ही निकाली हैं।

यदि प्रवेश प्रक्रिया के संपूर्ण परिवेश को देखा जाए तो पांचवी कट ऑफ लिस्ट शायद आखरी कट ऑफ लिस्ट ही थी। अब दिल्ली विश्वविद्यालय 18 नवंबर को विशेष कट ऑफ लिस्ट जारी करेगा। नियमानुसार विशेष कटऑफ लिस्ट में महाविद्यालयों में बची हुई सीटों का लेखा-जोखा बताया जाएगा कि कितनी सीटें किस महाविद्यालय में खाली हैं। यदि किसी विशेष कैटेगरी की सीटें किसी दूसरी को ट्रांसफर नियमानुसार की जा सकती हैं, तो वह भी ट्रांसफर करने के बाद सीटों का लेखा-जोखा देते हुए विशेष कट ऑफ लिस्ट निकाली जाएगी।

परंतु इसमें ध्यान देने वाली बात यह है कि विशेष कट ऑफ लिस्ट के आधार पर वह विद्यार्थी जिन्होंने 5 कटऑफ लिस्ट के आधार पर किसी भी महाविद्यालय में एडमिशन ले लिया है वह विशेष कटऑफ लिस्ट के आधार पर एडमिशन नहीं ले पाएंगे। इन विद्यार्थियों को विशेष कटऑफ लिस्ट के आधार पर कॉलेज बदलने से निषेध किया गया है। इस विशेष कटऑफ लिस्ट के आधार पर सिर्फ उन्हीं विद्यार्थियों को दाखिला मिलेगा जिन्होंने अभी तक कहीं भी दाखिला नहीं दिया। दिल्ली विश्वविद्यालय के नियम से विद्यार्थियों एवं अभिभावकों में रोष व्यापक है इसका नजारा सोशल मीडिया पर देखने को मिलता है।

दिल्ली विश्वविद्यालय का यह नियम अपने आप में कोई न्यायोचित कदम नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि दिल्ली विश्वविद्यालय कम अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को पिछले दरवाजे से अधिक कट ऑफ वाले कॉलेजों में दाखिला देने के लिए यह एक चाल चल रहा है। अन्यथा विशेष कटऑफ में यदि 0.50% अंक कम किऐ जाते हैं और उससे अधिक कटआफ वाला विद्यार्थी पहली पांच कटऑफ के आधार पर कहीं और प्रवेश ले चुका है तो वह उस महाविद्यालय में प्रवेश लेने से वंचित रह जाता है।
इस प्रक्रिया को किसी भी प्रकार से न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता।

यह भी नहीं मालूम कि दिल्ली विश्वविद्यालय ने किस स्तर पर इस निर्णय की मान्यता प्राप्त की? क्या दिल्ली विश्वविद्यालय ने विद्वत परिषद और कार्यकारी परिषद द्वारा इस निर्णय को पारित कराया? क्या कुलपति और कुलसचिव ने मिलकर ही यह निर्णय अपने स्तर पर ले लिया? पिछले 3 वर्षों का दिल्ली विश्वविद्यालय का लेखा-जोखा यह बताता है कि दिल्ली विश्वविद्यालय ने किस प्रकार अपनी निष्थिलता, निष्क्रियता एवं संवेदनहीनता का बदसूरत प्रदर्शन करते हुए कोई भी सकारात्मक कार्य विश्वविद्यालय, विद्यार्थियों एवं शिक्षकों के लिए नहीं किया। फिर विद्यार्थियों के भविष्य की चिंता के विषय का तो प्रश्न ही नहीं उठता।

हमने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति, कुलसचिव, संयुक्त कुलसचिव एवं भारत सरकार के शिक्षा मंत्री, शिक्षा राज्यमंत्री एवं शिक्षा सचिव को ई-मेल के जरिए इस विषय पर स्पष्टीकरण देने को कहा। परंतु कहीं से भी किसी भी स्तर पर स्पष्टीकरण देना उचित नहीं समझा गया।

इस बात को भी स्पष्ट रूप से समझना होगा कि क्या दिल्ली विश्वविद्यालय की विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और शिक्षा मंत्रालय के साथ-साथ समाज और विद्यार्थियों के प्रति कोई जवाबदेही है? क्या इन पर किसी प्रकार का नियंत्रण है या विश्वविद्यालय के कुलपति को अपनी मनमानी करने के लिए छोड़ दिया गया है? विद्यार्थियों के भविष्य की चिंता तो दूर उसके बारे में सोचने और कुछ करने में पिछले 3 वर्षों में दिल्ली विश्वविद्यालय लगभग नाकाम ही रहा है। क्या अब कार्यकारी कुलपति जो इस समय दिल्ली विश्वविद्यालय का कार्यभार देख रहे हैं इस विषय का संज्ञान लेकर अपने इस नियम में सुधार लाएंगे?

आज भी विश्वविद्यालय ब्रिटिश मानसिकता के साथ ही काम कर रहे हैं जहां विद्यार्थियों, विद्यार्थियों के अभिभावकों और समाज के प्रति किसी भी प्रकार की जवाबदेही को अपनी तौहीन और हीनता समझते हैं। किसी भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को जवाब देने में इन्हें शर्म आती है। हालांकि उन्होंने हमारी ईमेल प्राप्त होने के बाद लीपापोती करते हुए कोविड-19 की आड़ में स्पेशल कट ऑफ लिस्ट को अभी स्थगित कर दिया है, परंतु अपनी गलती को मानने से अभी भी परहेज है।

यह तो समय ही बताएगा कि क्या शिक्षा मंत्रालय इस बात का संज्ञान लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति और कुलसचिव से इस विषय में स्पष्टीकरण मांगेगा? परंतु दिल्ली विश्वविद्यालय को इन सभी प्रश्नों ने एक बड़े संदेह के घेरे में खड़ा कर दिया है। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतीक चिन्ह में ‘निष्ठा धृतिः सत्यम्’ लिख देने मात्र से ही निष्ठा धृति और सत्य का आभास समाज को नहीं होगा।

लेखक, डॉ राजेश बंसल, फोर्थ एस्टेट न्यूज़ के मुख्य कार्यकारी संपादक हैं।

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