दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने विभिन्न महाविद्यालयों में दाखिले के लिए पहली कट ऑफ लिस्ट अकादमिक सत्र 2020- 21 के लिए सार्वजनिक रूप से प्रकाशित की। यह बहुत ही चौंकाने वाला विषय है कि कई महाविद्यालयों जैसे लेडी श्रीराम कॉलेज ने अपनी पहली कटऑफ में 100% अंक पाने वाले विद्यार्थियों को ही दाखिला देने का निश्चय किया है। यह वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर एक तमाचा है क्योंकि ऐसा संभव ही नहीं है कि एक विद्यार्थी शत प्रतिशत अंक प्राप्त कर अपने विषय का एक्सपर्ट बन गया हो। इसी भेड़ चाल में कई विद्यार्थी ना चाहते हुए भी फंस जाते हैं और उनकी स्थिति त्रिशंकु के समान हो जाती है। लगभग 5500 से अधिक विद्यार्थियों को केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा ली गई परीक्षा में शत प्रतिशत अंक प्राप्त हैं। यह एक चिंता का विषय है।
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की परीक्षा प्रणाली भी प्रश्नों के घेरे में आ जाती है। हमें कुछ परीक्षार्थियों ने बताया कि बोर्ड द्वारा दी गई मॉडल उत्तर मार्गदर्शिका में दर्शाए गए सभी बिंदुओं को उन्होंने अपने परीक्षा में उत्तर पुस्तिका में अपने उत्तर में समाहित किया फिर भी परीक्षक ने उन्हें पूर्ण अंक नहीं दिए। जब विद्यार्थी ने पुन:आंकलन करने के लिए आवेदन दिया तो केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने महज दिखावा मात्र केवल एक अंक बढ़ाकर उनको सूचित कर दिया। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के परीक्षक यदि बोर्ड के दिशा निर्देशों का पालन नहीं करेंगे तो कई विद्यार्थियों को इसका बहुत बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। बोर्ड का इन परीक्षकों पर कोई नियंत्रण नहीं है और बोर्ड की मानसिकता भी इस विषय के समाधान ढूंढने की ओर अग्रसर नहीं होती लगती।
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अधिकारी आज भी भारत के नागरिकों से ब्रिटिश मानसिकता के साथ ही व्यवहार कर रहे हैं। ना तो उन्हें अपनी गलतियां दिखाई देती हैं और ना ही वह उन गलतियों को समझकर उन्हें सुधारने को तैयार हैं। शायद बोर्ड के अधिकारियों को ऐसा लगता है कि उनकी नागरिकों, शिक्षा मंत्रालय और अन्य लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति कोई जवाबदेही नहीं है।
विद्यालयों में विद्यार्थियों को खेलकूद एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए दबाव बनाया जाता है। हालांकि इसमें दो राय नहीं है कि खेलकूद और सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेने से विद्यार्थियों के व्यक्तित्व और प्रतिभा में निखार आता है, परंतु इसमें उनका काफी समय खप जाता है। यदि इन गतिविधियों के लिए कॉलेज प्रवेश प्रक्रिया में प्राथमिकता दी जाए तो विद्यार्थियों की मेहनत पर पानी नहीं फिरेगा। विश्व के हर ख्याति प्राप्त विश्वविद्यालय में अतिरिक्त गतिविधियों को प्रवेश प्रक्रिया में महत्व दिया जाता है।
आज जो विद्यार्थी पूरे वर्ष विद्यालय से गायब रह कर, विद्यालय को नजरअंदाज कर, रट्टा लगाने वाली कमर्शियल निजी ट्यूशन सेंटर में कोचिंग लेकर आता है, वह अधिक अंक लेकर महाविद्यालय में दाखिला लेने में सक्षम हो जाता है। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड विद्यार्थियों के भविष्य से खिलवाड़ नहीं कर सकता। यदि इन सभी को उचित प्राथमिकता नहीं दी जा सकती तो इन सभी अतिरिक्त गतिविधियों को विद्यालयों में बैन कर देना चाहिए।
दिल्ली विश्वविद्यालय का प्रवेश तंत्र भी अपने आप में मकड़ जाल ही है। शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी की गई NIRF रैंकिंग के अनुसार मिरांडा हाउस दिल्ली विश्वविद्यालय का ही नहीं बल्कि पूरे देश का सर्वोच्च महाविद्यालय है। परंतु विभिन्न कालेजों की कट ऑफ लिस्ट देखकर लगता है कि इन कॉलेजों ने अपना अलग साम्राज्य खड़ा किया हुआ है। जहां प्रथम NIRF रैंकिंग वाले कॉलेज मिरांडा हाउस में 98.5% अंक प्राप्त विद्यार्थी को प्रवेश बीए ऑनर्स इकोनॉमिक्स में मिल सकता है, वहीं लेडी श्रीराम कॉलेज जिसकी NIRF रैंकिंग पूरे भारत में द्वितीय है, केवल शत प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को ही दाखिला देगा।
अब सही समय आ गया है कि कॉलेज की कट ऑफ परसेंटेज उनकी अपनी-अपनी NIRF रैंकिंग के हिसाब से ही दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा केंद्रीय स्तर पर ही निर्धारित की जाए और कॉलेजों की मनमानी खत्म की जाए। दिल्ली विश्वविद्यालय की संपूर्ण प्रवेश प्रणाली विद्यार्थियों के लिए मानसिक अवसाद का एक कारण बन गई है और हमारी भारतीय शिक्षा प्रणाली और शिक्षा नीति का उपहास करती हुई लगती है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत लगभग 70 से अधिक महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय विभाग काम कर रहे हैं। इन महाविद्यालयों के व्यापक इंफ्रास्ट्रक्चर का लगभग 50% से भी कम ही उपयोग हो रहा है।
जैसे दिल्ली सरकार के सभी स्कूलों में प्रथम पाली एवं द्वितीय पाली में विद्यार्थियों को पढ़ाया जाता है, उसी प्रकार दिल्ली विश्वविद्यालय के सभी महाविद्यालयों में भी अनिवार्य रूप से प्रथम पाली और द्वितीय पाली में विद्यार्थियों को प्रवेश दे कर पढ़ाई जारी की जाए। इस पद्धति को अपनाने से विश्वविद्यालय की विभिन्न पाठ्यक्रमों में सीटें दोगुनी हो जाएंगी और साथ-साथ युवाओं को भी रोजगार के नए अवसर प्राप्त होंगे।
यदि पूर्णकालिक भर्ती ना भी की जाए तो रिटायर्ड शिक्षकों को अनुबंध के आधार पर तनखा घटा पेंशन के फार्मूले के आधार पर रखा जा सकता है। जिस गति से जनसंख्या एवं विद्यार्थियों की संख्या बढ़ रही है उस गति से नए महाविद्यालयों का निर्माण नहीं किया जा सकता परंतु नवन्मेषी योजनाओं को लागू कर महाविद्यालयों की पाठ्यक्रम सीटों को दुगना किया जा सकता है। इससे समाज में सरकार और शिक्षा तंत्र के प्रति विश्वास पैदा होगा।
सही समय आ गया है कि इन कॉलेजों को सही मायने में नियंत्रित किया जाए ताकि इनके द्वारा बिछाए जा रहे मकड़ जाल को तोड़कर विद्यार्थियों को चैन की सांस मिले। हमें कोशिश करनी होगी कि उच्च शिक्षा के ठेकेदार शत प्रतिशत अंकों की आड़ में शिक्षा प्रणाली को शुन्य ना करने पाऐं।
लेखक, डॉ राजेश बंसल, फोर्थ एस्टेट न्यूज़ के मुख्य कार्यकारी संपादक हैं।
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