प्रत्येक राष्ट्र का एक इतिहास और संस्कृति होती है और इस के सभी निवासियों की अपनी संस्कृति के प्रति श्रद्धा होती है। प्रत्येक सभ्यता, संस्कृति अपने आप में पूर्ण होती है।पुण्य भूमि भारत को तो सभी ने माता के रूप में पूजा है। स्वामी विवेकानंद जी कहते थे, ‘इस देश का एक भी हिंदू अगर धर्मांतरण करता है तो वह एक प्रकार से राष्ट्रांतरण करता है।’ यह राष्ट्रांतरण आगे जाकर राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए बड़ा खतरा बन जाता है। देश के उन्हीं भागों में से अलग राष्ट्र बनाने की बात होती है जिस हिस्से में हिंदू कम होते हैं। संघ के तृतीय सरसंघचालक बाला साहेब देवरस जी कहते थे, ‘हिंदू घटा तो देश बंटा।’महाराष्ट्र के धर्मांतरण प्रभावी जिले पालघर के एक गांव में संतों की लीचिंग द्वारा दुर्भाग्यपूर्ण हत्या धर्मांतरण से अपनी संस्कृति के प्रति उपजी अश्रद्धा का ही नतीजा है।
भारत में मिशनरी संगठन विदेशी आर्थिक सहायता द्वारा धर्मांतरण के काम में संलग्न है। भारत लंबे समय से ईसाई धर्मांतरण का निशाना है। पुर्तगाली कब्जे के बाद गोवा में पादरी जेवियर द्वारा उत्पीड़न किया गया और 1561 में ईसाई कानून लागू हुए। हिंदू प्रतीक धारण करना अपराध था। तिलक लगाना और घर में तुलसी का पौधा लगाना मृत्युदंड का कारण बना। एआर पिरोलकर द्वारा लिखित ‘ द गोवा इंक्वज़िशन ‘के अनुसार ” अरोपी के हाथ-पैर काटना, मोमबत्ती से शरीर जलाना, रीढ़ तोड़ना, गौ मांस जैसे तमाम अमानवीय अत्याचार किये गये। “
भय, प्रलोभन और तथाकथित झूठी सेवा के माध्यम से वह वंचितों और आदिवासियों का धर्मांतरण करवाते हैं। धर्मांतरित बंधु अपनी भारत माता और संस्कृति से कट जाता है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने हाल में विदेशी अनुदान विनियमन अधिनियम में संशोधन किया है। अब सभी एनजीओ विदेशी सहायता का 20% हिस्सा ही प्रशासनिक व्यय में दिखा पाएंगे, जब की पहले वह 50% तक खर्चा प्रशासनिक व्यय में दिखाते थे। विदेशी अनुदान को किसी अन्य संगठन को भी स्थानांतरित करने पर रोक लगाई गयी है। अधिनियम में राष्ट्रीय सुरक्षा को क्षति पहुंचाने वाली किसी भी गतिविधि पर रोक की व्यवस्था की गयी है। लाइसेंस नवीनीकरण के लिये आधार संख्या देने को अनिवार्य करने के साथ-साथ लोकसेवक, सरकार या सरकारी नियंत्रण वाले निगमों को विदेशी अनुदान प्राप्त करने के अयोग्य घोषित किया गया है। इस प्रक्रिया से विदेशी अनुदान से भारत को कमजोर करने की साजिश में जुटे लोग और संस्थान परेशान हो गये हैं। सरकार्यवाह भय्या जी जोशी के शब्दों में “हमें इसमें आपत्ति नहीं कि यदि कोई अपनी खुशी से ईसाई धर्म को अपनाता है, लेकिन जबरन किसी का धर्मांतरण कराना अपराध है। कई ऐसे एनजीओ हैं जो जल संरक्षण और वन संरक्षण के लिए काम करते हैं, लेकिन जल्द ही चर्च का अनुसरण करने लगते हैं।”
ईसाई धर्मांतरण अंग्रेजी राज के समय से ही चिंतित करता रहा है। मिशनरी संगठन उपचार, शिक्षा आदि सेवाओं के बदले गरीबों का धर्मांतरण कराते हैं। 18 जुलाई 1936 के हरिजन में महात्मा गांधी ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए लिखा था ” आप पुरस्कार के रूप में चाहते हैं कि आप के मरीज ईसाई बन जाएं। “अफ्रीकी आर्चबिशप डेसमंड टुटु ने कहा था” जब मिशनरी अफ्रिका आए तो उनके पास बाइबल थी और हमारे पास धरती। मिशनरी ने कहा हम सब प्रार्थना करें।हमने प्रार्थना की।आंखें खोली तो हमारे हाथ में बाइबल थी और भूमि उनके कब्जे में ।” राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत जी के शब्दों में “मदर टेरेसा की सेवा अच्छी रही होगी।परंतु इसमें एक उद्देश्य हुआ करता था कि जिसकी सेवा की जा रही है उसका ईसाई धर्म में धर्मांतरण किया जाए।”
भारत में ईसाई धर्मांतरण का मुख्य निशाना आदिवासी हैं। आदिवासी बहुल क्षेत्र के साथ अन्य क्षेत्र जैसे आंध्र प्रदेश के चार जिले ईसाई बाहुल्य हो चुके है। ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़,उत्तर पूर्व के राज्यों के अंदर धर्मांतरण बहुत तेजी से फलफूल रहा है।ध्यान रहे तुर्क मुग़लों ने जो ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन किया, उसके कारण ही पाकिस्तान बना। धर्मांतरण के पक्ष में तर्क दिया जाता है कि हिंदू समाज की जातिगत व्यवस्था ने हमें मजबूर कर दिया है, जबकि सच्चाई यह है कि 73 फिरकों वाला इस्लाम जहां देवबंदी बरेलवी की मस्जिद में नहीं जा सकता और 146 हिस्सों में बंटे हुए ईसाई हमें समानता का पाठ पढ़ाते हैं। वस्तुत: यह संघर्ष ऊंच-नीच, जाति व्यवस्था के विरुद्ध नहीं है। यह हिंदू समाज को तोड़ने के लिए गंभीर साजिश का परिणाम है। हिंदू समाज के अंदर दलित अथवा संत की जाति आधारित सम्मान की बात है तो हिंदू समाज में कभी जातिगत आधार पर किसी के सम्मान का आकलन ही नहीं किया।इस के उल्ट पिछड़ी जाति के चर्च में ऊँची जाति के ईसाई नहीं जाते। मुसलमानों में कोई अशरफ़ – उच्च जाति – किसी अजलफ के यहाँ सम्बन्ध नहीं बनाता।तो जातिवाद से तो नहीं निकल पाए। मिशनरियों ने आजकल नए हथकंडों का प्रयोग शुरू किया है,जैसे मदर मैरी की गोद में ईसा मसीह की जगह गणेश या कृष्ण को चित्रांकित कर ईसाइयत का प्रचार शुरू किया गया, ताकि आदिवासियों को लगे कि वे तो हिंदू धर्म के ही किसी संप्रदाय की सभा में जा रहे हैं।अब पंथ परिवर्तन करवाने के बाद भी हिंदू लिखते हैं ताकि पिछड़ी जाति का लाभ मिलता रहे। इन्ही मिशनरियों को आप भगवा वस्त्र पहनकर हरिद्वार, ऋषिकेश से लेकर तिरुपति बालाजी तक धर्म प्रचार करते पा सकते हैं। यही हाल पंजाब में है, जहां बड़े पैमाने पर सिखों को ईसाई बनाया जा रहा है। पंजाब में चर्च का दावा है कि प्रदेश में ईसाइयों की संख्या सात से दस प्रतिशत हो चुकी है।
मध्य प्रदेश में कॉंग्रेस के तत्कालीन मुख्य मन्त्री रवि शंकर शुक्ल ने न्यायमूर्ति भवानी शंकर नियोगी की अध्यक्षता में आजादी के तीन-चार वर्ष बाद मिशनरियों द्वारा धर्मांतरण की जांच हेतु आयोग बिठाया। आयोग ने 14 जिलों के 11,360 लोगों के बयान लिये। ईसाई संस्थाओं ने भी अपनी बात रखी। आयोग ने धर्मांतरण के लक्ष्य से भारत आये विदेशियों को बाहर निकालने हेतु सिफारिश की।
उच्चन्यायालय के सेवानिवृत न्यायधीश एम एल रेगे की जांच समिति (1982) ने ईसाई धर्मांतरण को दंगों का कारण बताया।न्यायमूर्ति वेणुगोपाल आयोग ने धर्मांतरण रोकने हेतु कानून बनाने की सिफारिश की। आस्ट्रेलियाई पादरी ग्राहम स्टेन्स की हत्या की जांच वाले वाधवा आयोग ने भी ईसाई धर्मांतरण को चिन्हित किया।
संविधान सभा में भी धर्म प्रचार के अधिकार (अनुच्छेद 25) पर बहस हुई। सभा के अधिकांश सदस्य इसके विरुध्द थे। लोकनाथ मिश्र ने धर्म प्रचार को गुलामी का प्रस्ताव बताया। उन्होने भारत विभाजन को को धर्मांतरण का ही परिणाम बताया।
लेकिन के एम मुंशी ने कहा कि भारतीय ईसाई समुदाय ने इस शब्द को रखने पर जोर दिया है। नतीजे कुछ भी हों, हमने जो समझौते किये हैं उन्हे मानना चाहिये। इसी कारण प्रकाशवीर शास्त्री ने 1960 को निजी विधेयक पेश किया। जनसंघ नेता अटल बिहारी वाजपेयी और कॉंग्रेस सांसद राम सुभग सिंह, सेठ गोविंद दास ने भी इसका समर्थन किया।मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों ने अधिनियम बनाए हैं लेकिन लालच और धोखाधड़ी द्वारा यह अभी भी जारी है। एफसीआरए में बदलाव के बाद राज्यों को भी धर्मांतरण के विरुध्द कानून बनाने चाहिये।अब समय आ गया है कि युवा भारत को सनातन वैभव पर पहुंचाने हेतु सभी को सामाजिक उत्तरदायित्व समझना होगा और देश तोड़क शक्तियों से भयभीत हुए बिना तथाकथित सेवा के नाम पर और डरा कर होने वाले धर्मांतरण रोकने हेतु प्रयासरत होना ही होगा।
सुखदेव वशिष्ठ एक लेखक, चिंतक और विचारक हैं।
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