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सुखदेव वशिष्ठ

व्यक्ति निर्माण और शिक्षक

सुखदेव वशिष्ठ

विष्णु पुराण में कहा गया है “सा विद्या या विमुक्तये !” अर्थात् विद्या वही है जो हमें विमुक्ति प्रदान करे !हमें सत् चित आनंद का साक्षात्कार कराकर विश्व के हर मानव को ज्ञान के प्रकाश द्वारा अज्ञान, दुर्गुण व अन्य न्यूनताओं से मुक्त करने वाली शिक्षा प्रदान करना ही भारत की शिक्षा प्रणाली का शाश्वत सत्य आदि काल से रहा है।आधुनिक संदर्भ में शिक्षा का अर्थ-संकेत मानव की अंतर्निहित क्षमताओं का प्रकटीकरण है।शिक्षा को मानव में निहित विविध प्रतिभाओं तथा क्षमताओं की पहचान एवं प्रकटीकरण के आधार स्तंभ के रूप में ग्रहण किया गया है।हमारे महान संतों तथा तपस्वियों ने शिक्षाप्रणाली के मूल उद्देश्य को सिद्ध करने हेतु विस्तृत दिशा-निर्देश दिये हैं, जिन्हें कार्यान्वित करने में शिक्षक की अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

शिक्षक का प्रथम कार्य यम व नियम ‘ के दस सिद्धांतों को विद्यार्थी के मन में बैठाना है। यम है – अहिंसा, सत्य, अस्तेय ,ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह। पांच नियम हैं – शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश-प्राणिधाण ।

युवाओं में यम-नियमों की भावना उनके द्वारा अत्यंत स्वस्थ वातावरण का निर्माण कर सकते हैं, जिसका अनुसरण कालांतर में अन्य लोग भी करेंगे।शिक्षक को युवा हृदयों के मन-मस्तिष्क में महान गुणों का बीजारोपण प्रारंभिक विद्यार्थी जीवन से ही करना चाहिये।

यह हमारे प्राचीन एवं अवार्चीन साहित्य ,जिसमें हमारे राष्ट्रीय आदर्शों और ऐतिहासक घटनाओं का चित्रण रहता है के अध्ययन से ही हो सकता है।युवाओं में अपनी ऋषि-मुनियों की महान परंपराओं के लिये गौरवानुभूति होनी चाहिये। यह तभी संभव हो सकता है जब हम अपनी राष्ट्रीय परंपराओं एवं परंपराओं का सम्मान करेंगे।

प. पू. गुरू गोलवलकर जी के शब्दों में ” प्रेरणास्पद उत्तम आदर्श के अभाव में हम छात्रों से यह अपेक्षा कैसे कर सकते हैं कि वे जीवन के मूल्यों के प्रति समर्पण तथा अनुशासन को आत्मसात कर लें यही ऐसा उच्चआदर्शवाद है, जिस से प्रेरित हो कर वे अपने उग्र आवेग को संयमित कर अपनी उफनती ऊर्जा को राष्ट्र निर्माण की रचनात्मक दिशा में मोड़ सकते हैं। “

अतः शिक्षकों को अपने विद्यार्थियों के समक्ष आदर्श प्रस्तुत करने ही होंगे।इतिहास के पाठन में हमें युवाओं को यह सिखाना ही होगा कि जिस धरती पर उन्होने जन्म लिया है वह कितनी महान है और उसके पूर्वजों ने भौतिक व अध्यात्मिक उपलब्धियों के ऐसे मानदंड स्थापित किये हैं जो आज भी मील के पत्थर हैं।इस के विपरीत हमारे इतिहास का अधिकांश भाग मुगल काल और ब्रिटिश काल है।यदि युवाओं को यही शिक्षा दी जाती रही कि भूतकाल में हमारा कुछ भी महान नहीं था, केवल मुगलों और अंग्रेजों के बाद हमारे राष्ट्र का विकास हुआ है तथा हमारे पूर्वज किसी प्रतिस्पर्धा के योग्य नहीं थे तो हम उनसे किसी सार्थक वस्तु की अपेक्षा नहीं कर सकते।हमारे इतिहास और महाकाव्यों से संबंधित चित्र विद्यालयों में लगाए जाने चाहिये।

आर्यभट्ट एवं भास्कराचार्य की भौतिकी विज्ञान में उपलब्धियां, पाई, शून्य एवं गुरुत्वाकर्षण के संस्कृत में सदियों पहले लिखे सूत्र, चरक एवं सुश्रुत का आयुर्विज्ञान का अद्वितीय भण्डार, भास्कराचार्य बीजगुप्त का गणित एवं भौतिकी के सम्बन्ध में विश्व को योगदान,बोधायन का पाइथागोरस से सैंकड़ो वर्ष पूर्व दिया प्रमेय हमेंअपनी युवा पीढ़ी को बताना ही होगा, और यह सब कार्य शिक्षकों द्वारा ही संभव है।
अपने भूतकाल एवं अपने पूर्वजों के प्रति गौरव जगाने पर ही देश के भविष्य के मन में वर्तमान की दुर्दशा के प्रति पीड़ा उत्पन्न होगी जो उज्जवल, समर्थ, आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करने के लिये शिक्षकों के माध्यम से उनका प्रेरणा सूत्र बनेगी।

सुखदेव वशिष्ठ लेखक चिंतक एवं विचारक हैं।

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