अनंत का तत्त्व-प्रश्न है- सृष्टि का रचियता कौन? इस संसार को बनाने वाला कौन है? कौन इसका संचालन करता है और कौन इसकी देखभाल करता है? चूँकि मनुष्य ही सृष्टि की सर्वेश्रेष्ठ रचना है इसलिए इस प्रश्न को उठाने वाला और इसका उत्तर ढूंढ़ने वाला भी मनुष्य ही है। बौद्धिक कुशलता के दम पर मनुष्य उस परमसत्ता को भगवान, ईश्वर, प्रभु, मालिक, गॉड, अल्लाह, परमेश्वर, सच्चिदानंद… अलग-अलग नामों से पुकार रहा है। सिर्फ नाम देकर वह रुकना नहीं चाहता, उसे तो उससे साक्षात्कार करना है और सदियों से यह प्रयास चल रहा है। इसी खोज यात्रा का दृश्यावलोकन है ‘भगवान के देश का डीएनए’। यह कोई आध्यात्मिक पुस्तक नहीं है, न ही राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों के परिमार्जन के लिए कोई विज्ञान शास्त्र है।
अपनी खोजी प्रवृत्ति के दम पर मनुष्य ने अपनी शारीरिक रचना के सूक्ष्म से सूक्ष्मतम रहस्यों को उधेड़कर मेडिकल साइंस में सब कुछ बता दिया है। मनुष्य की शारीरिक संरचना कितना जटिल है, यह पढ़ने-लिखने वालों से छिपा नहीं है। यह संरचना आश्चर्यजनक है न? परन्तु इस संरचना को डिक्टेट करने वाला, यानी संचालित करने वाला मन और उसे नियंत्रित करने वाला विचार कहां रहता है? दुनिया की कोई भी साइंस लैब उसे देखने का दावा नहीं कर पाई है। यह विचार जो मनुष्य की एकल संपत्ति है, उस पर दुनिया की कोई ताकत अधिकार नहीं जता सकता है। उस क्षमता से परिचित होना, मनुष्य का परम कर्तव्य है। इस के साथ ही अपना समाज, अपना गाँव, अपना शहर और राष्ट्र जुड़ा हुआ है। परंतु इनसे जुड़ने-जोड़ने की कड़ी हैं संवेदनाएं। पुस्तक का अध्याय, ह्यूमन सेंटिमेंट्स, टेंडेंसीज और थॉट्स मैनेजमेंट! हमें मनुष्य की प्रवृत्ति और संवेदनाओं तक ले जाता है। यहीं पर परिचय होता है, प्रेम से। प्रेम ही वह आधार है जो संवेदनाओं का जन्म देता है। संवेदनाओं की वर्षा होती है, जन्म देने वाली जननी माँ से। सृष्टि के शाश्वत नियम की अनुपालना में, जिसे मनुष्य अपनी-अपनी भाषा में जननी को माँ, मदर आदि कह कर परिभाषित करता है, हमारी वही माँ ह्यूमन सेंटिमेंट्स का पहला बिन्दु और अहसास है। यही लॉ ऑफ नेचर भी है। पुस्तक की इस कड़ी में प्रेम तत्त्व की वैज्ञानिकता सुपरिभाषित है। प्रेम सागर से उठने वाली लहरों से परिचय कराते हुए शोधकर्ता डॉ. जयकरन गोयल ने संपूर्ण समाज को …और मनुष्य की नियति है भगवान होना अध्याय में उस परमतत्त्व का दर्शन कराया है। यहीं पर ‘भगवान के देश का डीएनए’ शोधयात्रा की पूर्णाहुति होती है।
गौरव की बात है कि भारत भूमि पर हमारा जन्म हुआ है। हम भारतवासियों के लिए गौरव की बात है कि इसी पूण्यभूमि पर चरण रखने वाले हमारे पूर्वजों, मनीषियों यानी ऋषि-मुनियों ने उंगली पकड़कर हमें ‘माँ’ के रूप में प्रकृति और नियति का शाश्वत दर्शन कराया है। भगवान के देश का डीएनए नामक पुस्तक भारतीय संस्कृति एवं सांस्कृतिक धरोहर का एक सदृश्य चित्रण है और आज की युवा पीढ़ी के लिए अत्यंत उपयोगी साबित हो सकता है।
संदीप मित्तल
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