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आत्महत्याएँ भी टल सकती है…..!

 

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस , आत्महत्याएँ भी टल सकती है, Sucide
प्रेय पटेल

10 सितंबर यानि विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस जो पुरे विश्वभर में “आत्महत्या को भी टाला जा सकता है” इस संदेश के साथ आत्महत्या के खिलाफ़ जागृकता फैलाने के लिए मनाया जाता है। विश्व आरोग्य संस्था(WHO) के एक विवरण के अनुसार प्रति 40 सेकंड में 1 व्यक्ति आत्महत्या से जान देता  है। विश्वभर में प्रति वर्ष ८००००० लोग आत्महत्या से जान  देते  है। अगर हम भारत की बात करे तो 16.3% आत्महत्या दर के साथ 21 वे स्थान पर है। भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या (ADSI) की रिपोर्ट में हम आत्यहत्या के आंकड़े पर गौर करे तो प्रति वर्ष यह आंक तेजी से बढ़ता ही चला जा रहा है।

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस , आत्महत्याएँ भी टल सकती है, Sucide

ऐडीएसए, २०१९ के आंकड़े दर्शाते है की २०१९ के कुल आत्महत्या मामले का २३.४% दैनिक वेतन भोगी, १५.४% गृहिणियाँ, ७.४% विद्यार्थीगण, ७.४% खेती क्षेत्र से जुड़े लोगों के मामले थे। तो यह सब के पीछे जिम्मेदार कौन है? हमें याद रखना चाहिए,कि इन सबके पीछे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हम और हमारी सोच ही कहीं न कहीं जिम्मेदार है। आज-कल माता-पिता अपने बच्चों पर पढाई एवं उसमे भी उत्कृष्ट प्रदर्शन का इतना दबाव बनाते है जिसकी कोई बात ही नहीं! और बच्चे यह दबाव सहन नहीं कर पाते तो वे  आत्महत्या जैसा गंभीर कदम उठा लेते हैं। विश्व आरोग्य संस्था के आंकड़े कहते हैं कि १५-२९ के आयु के लोगों के मृत्यु का मुख्य कारण आत्महत्या ही होता है। आज की युवा पेढ़ी छोटी-छोटी बातों पर भी आत्महत्या जैसा गंभीर कदम उठाने से हिचकिचाते नहीं है। पेरेंट्स ने डांटा तो आत्महत्या, कम अंक आए तो आत्महत्या, नौकरी चली गई तो आत्महत्या, पारिवारिक झगड़ा हुआ तो आत्महत्या। कहीं  न कहीं हम  समज नहीं पा रहे हैं कि किसी भी समस्या का समाधान आत्महत्या नहीं होता! और हम यह नहीं समझते है कि आत्महत्या से सिर्फ हमें नहीं बल्कि हमारे परिवार एवं मित्रगण को भी मानसिक रूप से बहुत ठेस पहुँचती है।

कोई भी व्यक्ति आत्महत्या करने का निर्णय एक पल में नहीं लेता। उसके पीछे लम्बी नकारात्मक विचार प्रक्रिया उत्तरदायी होती है। जिसके संकेत हमें कई दिनों पहले से मिलने शुरू हो जाते है जैसे कि “मैं अब जिंदगी से हताश हो गया हूँ”, “मैं अब और नहीं जी सकता”, “खुदको सामाजिक तौर से अलग-ठलग कर देना”, “खुदको हानि पहुंचे ऐसे नशीले प्रदार्थो का सेवन करना” आदि। इन सभी आत्महत्या के चेतवनी संकेतो को हमें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। अगर कोईभी व्यक्ति ऐसा मिले तो उसकी मनोव्यथा को सुननी चाहिए व समझनी चाहिए एवं समस्या का समाधान करने में मदद करनी चाहिए। और जितना हो सके उतना उसको बाहरी दुनिया से जोड़ना चाहिए। अगर वो नशीले पदार्थो का सेवन करता हो तोह उसे त्वरित बंध करा देना चाहिए। उसे स्वस्थ व संतुलित भोजन कराना चाहिए। प्रतिदिन नित्यक्रम से व्यायाम कराना चाहिए। परिवार में उसके लिए सकारात्मक वातावरण बनाना चाहिए। और अगर फिर भी जरूरत पड़े तो मनोचिकित्सक की सहायता लेनी चाहिए।

बार बार अक्सर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अगर आज काली रात बीती है तोह उसके बाद कल सुनहरा सूरज निकलेगा ही। उतार-चढ़ाव जीवन का एक अभिन्न अंग है। अगर हम मेवाड़राज श्री महाराणा प्रताप जी की बात करे तो १५७३ में अपने ही रिश्तेदार जिनसे खून का रिश्ता था वही उनके बड़े प्रतिद्वंदी अकबर के साथ मिलकर महाराणा प्रतापजी से युद्ध किया था। और तुरंत महाराणा प्रतापजीने अपना वैभवी दुर्ग को त्यागकर अरवल्ली के जंगलो में सादगी पूर्ण जीवन जिया। फिर शून्य से अपना सैन्यबल तैयार कर अकबर के खिलाफ़ हल्दीघाटी का युद्ध बड़ी वीरता के साथ खेला और उसे पराजित भी किया। इनसे हमें यही प्रेरणा मिलते है की जीवन के प्रत्येक क्षण में स्थितप्रज्ञ रहकर एवं परमकृपालु परमात्मा में श्रद्धा रखकर बहादुरी से उसका सामना करना चाहिए। जिसमें हम सभ्य समाज को भी अपना महत्वपूर्ण योगदान देना होगा। हमें स्वयं में एवं दुसरो में जीवन की चुनौतियों से भागने की बजाए उसका डट कर सामना करने की वृत्ति जगानी ही होगी। समाज, सरकार, मीडिया के सामूहिक प्रयास के बदौलत ही हम आत्महत्या जैसी प्रवृत्ति को रोक सकते है।

प्रेय पटेल सूचना प्रौद्योगिकी स्नातक के अंतिम वर्ष के छात्र हैं और भारतीय संस्कृति, परंपरा, समाज कल्याण आदि विषयों में रूचि रखते हैं।

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