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राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020

विजय नड्डा

शिक्षा नीति का स्वागत होना चाहिए – राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 की घोषणा के अगले दिन 34 समाचार पत्रों के अध्ययन के पश्चात प्रसिद्ध शिक्षाविद श्री अवनीश भटनागर ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति का देश में प्रारम्भिक तौर पर व्यापक स्वागत हुआ है। उनके अनुसार 70 प्रतिशत स्वागत, 6 प्रतिशत स्वीकार एवं विरोध समान एवं 24 प्रतिशत शुद्ध विरोध हुआ है। 34 वर्ष बाद पूरे 6 वर्ष के व्यापक समाज मंथन के पश्चात देश को मिली राष्ट्रीय शिक्षा नीति का भव्य स्वागत होना ही चाहिए। इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति की प्रतीक्षा इतनी लम्बी हो गई थी कि शिक्षा नीति आ भी रही है, यह भी अब लोग लगभग भूल चुके थे। इस शिक्षा नीति की धीमी गति का आलम यह है कि इस बीच केवल मंत्री ही नहीं बदले बल्कि मानव संसाधन मंत्रालय का नाम भी बदल गया और इस शिक्षा नीति को घोषित करने वाले तीसरे शिक्षा मंत्री हैं। केंद्र सरकार शिक्षा नीति के महत्व को देखते हुए समाज के हर वर्ग के विस्तृत सुझाव, सुझावों पर व्यापक चिंतन व गहन मंथन को पूरा समय देना चाहती थी। यही कारण था कि भारी दबाव के बाद भी सरकार कोई जल्दीबाजी नहीं करना चाहती थी। शिक्षा नीति निर्माण में जन सहभागिता को लेकर सरकार की गम्भीरता यहीं से ध्यान में आती है कि 2.5 लाख गांव, 676 जिले व 6600 ब्लॉकों को इस सुझाव प्रक्रिया से जोड़ा गया। शिक्षाविदों, अध्यापकों, किसान- मजदूरों इतना ही नहीं तो स्वयं छात्रों तक से सुझाव लेने का प्रयास किया गया। स्वतन्त्रता के पश्चात शिक्षा नीति पर इतना व्यापक जन सहभाग कभी नहीं किया गया। इसके विपरीत शिक्षा नीति दिल्ली या मेट्रो सिटी के बड़े सरकारी दफ्तरों या विश्व विद्यालयों में कुछ सीमित संख्या में विद्वानों की सहभागिता से बन जाती रही हैं।

गहन अध्ययन के पश्चात ही दें प्रतिक्रिया – राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर एक टीवी चेनल पर आयोजित चर्चा में पंजाब के पूर्व उप कुलपति एवं प्रसिद्ध शिक्षाविद से मिलना हुआ। चर्चा में आश्चर्य तब हुआ है जब उन्होंने कहा कि शिक्षानीति लाने से पहले सरकार को और ज्यादा लोगों के सुझाव लेने चाहिए थे। जब चर्चा में उन्हें बताया कि इतने व्यापक स्तर पर जनसहभागिता के लिए प्रयास हुआ है तो उन्हें भी आश्चर्य हुआ। राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर अखबारों में भी तथाकथित बुद्धिजीवियों की त्वरित प्रतिक्रिया देख कर निराशा सी हो रही है। अधिकांश लोगों की प्रतिक्रिया राजनीति प्रेरित लग रही हैं जबकि आवश्यकता है कि शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषय पर राजनीति से बचना चाहिए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति को नई पीढ़ी व राष्ट्र के व्यापक हित में देखने की आवश्यकता है। वैसे तो पूर्ण कोई भी चीज नहीं हो सकती है। हम जानते हैं कि प्रत्येक योजना व नीति में सुधार की सम्भावना रहती ही है। सरकार द्वारा गत 6 वर्षों से सार्वजनिक तौर पर बार-बार आग्रह करने पर ये कथित शिक्षाविद सकारात्मक सुझाव देते तो शायद देश व समाज के लिए ज्यादा लाभदायक होता। रोचक बात है कि गत छह वर्षों से सरकार द्वारा लगातार सुझाव मांगे जाते रहे हैं लेकिन राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर विरोध के स्वर उठाने वाले लोग (टीवी चेनल में चर्चा में शामिल पूर्व उप कुलपति समेत) सुझाव देने में नदारद थे।

बहुत कुछ बदलेगा राष्ट्रीय शिक्षा नीति से – राष्ट्रीय शिक्षा नीति अतीत से सीखने, वर्तमान की चुनोतियों से निपटने एवं सुखद भविष्य की सम्भावना  तलाशने की दिशा में गम्भीर व ईमानदार पहल है। ऐसा लगता है कि छात्र मनोविज्ञान के भारतीय दर्शन को आधार बनाने का प्रयास हुआ है। 5+3+3+4  फार्मूला भी इसी आधार पर है। शिक्षा को डिग्री तक सीमित न रख कर छात्र में जीवन स्किल को स्थान देना सुनिश्चित करने का आग्रह है। इंटर डिसिप्लिन व आर्ट इंटीग्रेशन की भी बहुत सुंदर कल्पना की गई है। विज्ञान का छात्र संगीत भी सीख सकता है। शिक्षा को परीक्षा, डिग्री से बाहर निकालने की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास है। शिक्षक प्रशिक्षण का आग्रह भी शिक्षा इस नीति में है। शिक्षण संस्थानों को राजनीति के पंजे से बाहर निकालने की योजना की गई है। सबसे बड़ी बात कि मानव को निर्जीव संसाधन मान कर मानव संसाधन मंत्रालय का नाम उचित शब्द शिक्षा मंत्रालय करना भी बहुत कुछ संकेत कर रहा है। नई पीढ़ी को गत अनेक दशकों से प्राचीन भारतीय ज्ञान परम्परा से वंचित रखने का जो पाप जाने-अनजाने हुआ है उस भारत की महान विरासत, प्राचीन ज्ञान नई पीढ़ी को देने की बात भी बहुत रोमांचकारी एवं गेम चेंजर होने की सम्भावना है। छात्रों के मूल्यांकन की परम्परागत पद्धति में भी बदल किया गया है। अब छात्र का मूल्यांकन उत्तर पुस्तिका में प्राप्त अंक के साथ साथ, अध्य्यापक का अभिमत, छात्र स्वयं को अंक देगा, इतना ही नहीं तो छात्र के दोस्त भी उसे अंक देंगे। इस प्रकार छात्र के मूल्यांकन को रोचक एवं अधिक व्यापक करने का प्रयास दिखाई दे रहा है।  मातृ भाषा में प्राथमिक शिक्षा भी भारतीय शिक्षा चिंतन को मान्य करना है। छात्रों के बस्तों के बोझ को कम करने की बात भी प्रसन्नता देने वाली है। शिक्षा पर जीडीपी का 6 प्रतिशत बजट देना भी अच्छा संकेत है।

राजनीति प्रेरित विरोध से रहें सावधान – चर्चा, संवाद व तार्किक ढंग से अपना पक्ष रखना भारतीय परम्परा है। अपने विचार के विरोध में उठने वाले स्वर को भी सम्मानपूर्वक सुनना व यथासम्भव उसे स्थान देने की परम्परा आगे बढ़नी चाहिए। लेकिन यह भी सत्य है कि राष्ट्र के सुखद भविष्य के लिए शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण एवं पवित्र विषय को राजनीति की चौखट एवं वैचारिक प्रतिबद्धताओं से बाहर निकालना होगा। हम सरकार का समर्थन न करें लेकिन सरकार द्वारा लाई गई शिक्षा नीति की अच्छी बातों का स्वागत अवश्य करना चाहिए। भारत में हम प्रत्येक विषय को अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धताओं से देखते हैं और इसी आधार पर समर्थन या विरोध करते हैं। समय आ गया है कि देश इस प्रकार की सोच से आगे निकले। शिक्षानीति को लेकर हमें इसके पक्ष में अपना स्वर उठाना होगा। राजनैतिक कारणों से विरोध के लिए विरोध के संगठित स्वर उठने वाले हैं। लगता है कि राजनीति प्रेरित हताश व निराश लोग राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर भी खूब हाय-तौबा करने वाले हैं। हमें ऐसे लोगों की मंशा को समझना होगा। अभिभावकों को अपने बच्चों के सुखद भविष्य के लिए शिक्षा नीति को समग्रतः से समझकर इस राजनीति व स्वार्थ प्रेरित विरोध को नकारना होगा। उनके लक्ष्य प्रेरित ही नहीं तो वास्तव में तो स्वार्थ प्रेरित विरोध से निराश न होते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए। हमें समाज में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में आई अच्छी बातों को ले जाना चाहिए।

शक्तिशाली भारत का नींव पत्थर बनेगी शिक्षा नीति – यद्यपि राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 में जो आना चाहिए था वह सब कुछ आ गया है, यह कहना भी ठीक नहीं है। भारत की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अभी और बहुत कुछ आने की संभावनाएं हैं। इसके बाबजूद समाज की विविधता को ध्यान में रखते हुए व्यापक समाज मंथन के बाद सर्वसम्मति बनाते हुए जितना सम्भव था राष्ट्रीय शिक्षा नीति के रूप में उतना सुंदर, सर्वसमावेशक और बड़ी बात है कि भारतीय मिट्टी से नई पीढ़ी को जोड़ने की दिशा में सरकार का साहसिक कदम है। भारतीयता के गर्व से अनुप्रेरित युवा पीढ़ी निश्चित ही विश्व गुरू भारत बनाने के संकल्प से प्रेरित होकर अपनी प्रतिभा व परिश्रम की पराकाष्ठा करेगी, ऐसा विश्वास है। मैकाले की कूट व कपट नीति से बनी एवं मार्क्स पुत्रों द्वारा सिंचित भारी भरकम व झूठे सिद्धान्तों व प्रतिबद्धताओं ने गत 7 दशकों से भारतीय प्रतिभा को पिंजरे में कैद कर रखा था। अब हमारे युवाओं की प्रतिभा व स्वप्न को पंख लगने की पूरी संभावना, यह शिक्षा नीति देती है। नई पीढ़ी भाग्यशाली है जिसे नई शिक्षा नीति में पढ़ने का सौभाग्य मिलेगा। अगस्त मास में राष्ट्र की स्वतन्त्रता और ‘दैविक, दैहिक, भौतिक तापा, राम राज काहू नहीं व्यापा’ के प्रतीक अयोध्या में भगवान श्री राम मंदिर का शिलान्यास और इसी अगस्त मास में इस भव्य स्वप्न को साकार करने वाली युवा पीढ़ी निर्माण करने के संकल्प के साथ आई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का सम्पूर्ण देश को स्वागत व अभिनन्दन करना चाहिए।

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*विजय नड्डा एक लेखक चिंतक एवं विचारक हैं। वर्तमान में विद्या भारती के उत्तरी क्षेत्र के संगठन मंत्री का कार्यभार देख रहे हैं।

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